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शिकायत

शिकायत की थी मैंने चंद दिनों पहले तुम्हारे ज़ुबान से फिसले उर्दू की इक लफ्ज़ पर की जिसमे तुमने ज़ुबान की जगह जुबान कहा था | शिकायत की थी मैंने नुक्तों की अहमियत नहीं तुम्हे ( नुक्ता - उर्दू शब्दों में नीचे चिन्हित बिंदु ) नकार देती हो अक्सर, यों रिश्तों की बारीकियों को बदल जाते हैं माने शब्दों के तुम्हारी इस नादानी से शिकायत यूँ भी थी ज़ुबाँ साफ़ नहीं तुम्हारी हर्फ़ फूटते नहीं वाज़िब ( हर्फ़ - अक्षर) गरारे करो जो गर ( गरारा - गलगला ) सुबहे गुनगुने पानी से, तलफ़्फ़ुज़ निखर आए शायद ( तलफ़्फ़ुज़ - उच्चारण ) पलट कर बड़ी अदब से फ़रमाया था तुमने ज़ुबाँ साफ़ नहीं ना सही शब्द चुभते नहीं मुसल्सल ( मुसल्सल - अक्सर/हमेशा) बिन माँगे, बेमतलब मेरे तल्ख़ मशवरों की तरह ( तल्ख़ - कड़वा ) इक कसक सी दबी थी जेहन में तबसे तुम्हारे ग़रारों ने आज याद दिलाया है, बहुत सोच कर तुम्हारी बात पर मैंने शब्दों से ज्यादा उनके मानो पे तवज्जो देने का मन बनाया है |