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बँटवारा

इस आँगन में तेरा घर उस आँगन में मेरा, इस टहनी पर तेरे फूल उस झुरमुठ पर मेरे, मेरे फूल पुटुस के तो तेरे फिर क्यूँ बेली | इस बरगद में मेरी छाँव उन फूलों की खुशबू तेरी, इस पुर्वायी में मेरी साँसें उन सन्नाटों में धड़कन तेरी, इन मेढ़ों पर मेरी चाल उस पगडंडी पर तेरी | कुछ और बचा क्या बाबूजी का जो अब तक हुआ न तेरा-मेरा | हाँ बची है टूटे खटिये पे बाबूजी की लाश पर उसका कैसा मोल, बस यही अकेली लाश जिसको कोई ना लेना चाहे | बाकी सब खेत, खलिहान, चारपाई,बिछावन घड़ी, संदूक, बाबूजी की चश्में और लाठी तक के हो गए बटवारे | नज़रें बिछी हैं उस लाश के नीचे पड़ी उस खाट पर, अभी तक किसी ने भी उस पर अपना हक नहीं जमाया | आओ परदे गिरा दें इस सत्य आधारित नाट्य पे, शायद गाँव वालों के जाने के बाद उसका भी होना है बँटवारा  |

नेताजी

नेताजी के  कान आजकल कुछ बड़े हो गए हैं, सुनने में आया है | वो आजकल कही-सुनी बातों पर ज्यादा यकीन करते हैं, जांच पड़ताल में विश्वास नहीं रखते | पहले नेताजी की आँखें बड़ी थी, देखी बातों पर ही विश्वास करते थे | शायद इसलिए लोगों ने उन्हें पसंद भी किया और अपना नेता बना दिया | बड़ी आँखें पहले उनके चेहरे पे शोभा देती थी, दिल की सफाई आँखों से ही झलक जाती थी | अब कान बड़े होने से उनका चेहरा विकृत सा हो गया है और शायद चरित्र भी |