बँटवारा
इस आँगन में तेरा घर उस आँगन में मेरा, इस टहनी पर तेरे फूल उस झुरमुठ पर मेरे, मेरे फूल पुटुस के तो तेरे फिर क्यूँ बेली | इस बरगद में मेरी छाँव उन फूलों की खुशबू तेरी, इस पुर्वायी में मेरी साँसें उन सन्नाटों में धड़कन तेरी, इन मेढ़ों पर मेरी चाल उस पगडंडी पर तेरी | कुछ और बचा क्या बाबूजी का जो अब तक हुआ न तेरा-मेरा | हाँ बची है टूटे खटिये पे बाबूजी की लाश पर उसका कैसा मोल, बस यही अकेली लाश जिसको कोई ना लेना चाहे | बाकी सब खेत, खलिहान, चारपाई,बिछावन घड़ी, संदूक, बाबूजी की चश्में और लाठी तक के हो गए बटवारे | नज़रें बिछी हैं उस लाश के नीचे पड़ी उस खाट पर, अभी तक किसी ने भी उस पर अपना हक नहीं जमाया | आओ परदे गिरा दें इस सत्य आधारित नाट्य पे, शायद गाँव वालों के जाने के बाद उसका भी होना है बँटवारा |