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Showing posts from February, 2013

सवाल

तेरे सवाल, मेरे सवाल कुछ सीधे, कुछ संझे हुए कुछ कच्चे, कुछ मंझे हुए पूछे जाने की बाट जोहते, पंक्तिबद्ध खड़े, बेचैन सवाल उन सवालों पर भी सवाल उनके जवाबों पर भी सवाल थके मांदे, हारे पड़े, पूछे जाने से भयभीत, विचलित सवाल अतीत की छेडखानियों से लज्जित सवाल, कुछ मुर्झाये, कुछ बिखरे पड़े पलकों पे कुछ के दुखड़े जड़े क्या पूछ लेगा कब कोई, इस बात से चिंतित संकुचित सवाल हमारी कथनी-करनी, चाल-चरित्र सब पर सवाल अविश्वास के इस माहौल में, हाड़ मांस के हर प्राणी पर सवाल  जो पूछ पाता मैं कभी, तो पूछता मैं बस यही  सवालों पे हक फिर किसका जब मैं सवाल, जब तुम सवाल |

हाँ मैं लिखता हूँ

हाँ मैं लिखता हूँ लेखक नहीं, शायर नहीं पर मैं लिखता हूँ | टूटे फूटे शब्दों में टूटी फूटी भाषा में कोई पढ़ ले मेरी नज्मों को एक ऐसी बहकी आशा से हाँ मैं लिखता हूँ | अपनों पर लिखता हूँ सपनों पर लिखता हूँ शहर, गाँव, भावनाओं पर लिखता हूँ कुछ ना मिले तो अपने लिखने पर लिखता हूँ पर मैं लिखता हूँ | शब्दों को बड़ी मुश्किल से डिक्शनरी के पन्नों से ढूंढकर, उन्हें लाइनओं में फिट बिठा अपने लिखने के सपने को  साकार करता हूँ सच बोलूँ तो लिखने की आड़ में खिलवाड़ करता हूँ  पर मैं लिखता हूँ | शायद इसलिए की संवेदनाएँ हैं कुछ कोई समझ जाता जिन्हें  बिन कहे मेरे, तो  इक  सुकून होता | कोई पढता नहीं, समझता नहीं फिर भी मैं लिखता हूँ समझेगा कोई अगली बार  शायद इस आस में लिखता हूँ पर मैं लिखता हूँ | लेखक नहीं, शायर नहीं पर मैं लिखता हूँ ||