ग़ज़ल
कुछ इश्क़ किया कुछ काम किया जो कुछ किया सरेआम किया नाम उठा तेरा महफ़िल में ताने दे सबने परेशां किया झाँका मेरे भीतर तूने जब मुझ पत्थर को इंसान किया दर्द उठा, तेरा जिक्र हुआ जब मीरे इश्क़ का क्या इनाम दिया मैं दिन भर हँसता फिरता हूँ तेरे इश्क़ ने यूँ बईमान किया जब नाम लिया तेरा सजदे में इल्जाम लगा, बदनाम किया थक कर हिज़्र की रातों से साँसों को पूर्णविराम दिया