इश्क़: लाज़मी है

( आयतें - Lines which are sacrosanct/from Quran, मिसरे - Lines, सफहा - Page)

खुल जाऊँ मैं या
खुल जाए तू कभी
पढ़ ले आयतें
कुरेदी थी जो हमने
हर कोने पे बदन के
उँगलियों के फेर से;
समझ के माने
आज़ाद हो जाएँ फिर
गलतफहमियों के
बोझ से |

वो मिसरे की जिनमें
मेरे ख़्वाबों की लंबी लिस्ट
समेट ली थी तुमने अपनी
आँखों की पुतलियों पर,
सुपुर्द कर देना मेरे;
ऐवज़ में उनके
मैं वो आयतें दे दूंगा तुम्हे
जिनमें ना बिछड़ने की
कसमें खायी थी तुमने |

लिख बैठेंगे कुछ नया भी
गर नाराज़ ना हुई
तुम फिर से,
की कोरे सफहों की मायूसी
से बददुआएँ लगती है,
सुना है |
दर्द लाज़मी है इश्क़ में,
बिछड़ना भी
की कहाँ मुट्ठियाँ भिंचने से
रेत रुकी है कभी;
लाज़मी नहीं गर कुछ इश्क़ में
तो बिछड़े आशिक़ों का
दोबारा मिले बिना ही मर जाना |



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