तहज़ीब
तहज़ीब, तमीज
मर्यादा, दहलीज़
और अपनी पेचीदगी में उलझे
तमाम वो लफ्ज़
जिससे किसी खानदान की
इज़्ज़त बयां होती है
औरतों के हवाले
गुड्डे गुड्डियाँ, काजल,
मेहँदी, आँचल
और अपनी नज़ाकत में लिपटे
तमाम वो सिफ़त ( सिफ़त - स्वभाव )
इस्तेमाल होंगी
केवल औरतों के लिए
स्कूल, किताब
तालीम, खिताब
और काबिल दिखने की कोशिश में
उठे तमाम वो कदम
जिनपे उनका अधिकार नहीं
ऐसे सारे क़दमों को
जिससे उनका सरोकार नहीं
उठने से पहले
रोकना होगा
औरतों को
ख्वाहिश, खुदगर्ज़ी
अभिलाषा, मनमर्ज़ी
और आज़ादी की तमन्ना में घुले
तमाम वो ख्याल
उठ सकती घर की आबरू पे
जिनसे कोई सवाल
ऐसे अश्लील ख्यालों से दूर रहना
फ़र्ज़ होगा
औरतों का
रस्मो-रिवाज़
शर्मो-हया, घूँघट, हिज़ाब
मांगे जाने पे
हर बात का वाजिब जवाब
और हर वो नियम
जिनका आयतों में जिक्र है ( आयतें - कुरान की पंक्तियाँ )
गर आबरू की फ़िक्र है
अमल करना होगा
औरतों को
ऐवज़ में इन सबके
मिलेगी रियायतें
हँसने की, मुस्कुराने की
सपने कभी कभार
फिल्मों सी देख पाने की
जो सुन सके न कोई
दबी आवाज़ में यूँ गुनगुनाने की
देख ले न भीगा बदन कोई
बारिश में यूँ भीग जाने की
जब खा चूका परिवार पूरा
जो बच गया, पेट भर खाने की
'औरतें कम नहीं किसी से' सुनके
चैन की लंबी सांस ले पाने की
हैं और भी कई रियायतें
रहेंगी न अब शिकायतें
नुमायां है ये बड़प्पन समाज का ( नुमायां - ज़ाहिर )
पर बात क्या गिनने गिनाने की
हाँ, मिलेंगी ये रियायतें
जूड़ी होंगी मगर चद हिदायतें
इन सब के बाद
मवेशी जैसे चरते हैं,
लौट आते हैं होते शाम
वैसे हीं ईमानदारी से
घर लौट आने की
चूल्हे में लौ जलाने की
घर सबके लौट आने तक
चौखट पे आस लगाने की
बच्चों को दूध पिलाने की
बुजुर्गों के पाँव दबाने की
बिस्तर सबका सजाने की
फिर देख कोना कोई
फटी चादर डाल सो जाने की
और इन सब के बीच
खुशकिस्मत वो कितनी,
बार बार मन में दोहराने की
जिम्मेदारी होगी
औरतों की |
मर्यादा, दहलीज़
और अपनी पेचीदगी में उलझे
तमाम वो लफ्ज़
जिससे किसी खानदान की
इज़्ज़त बयां होती है
औरतों के हवाले
गुड्डे गुड्डियाँ, काजल,
मेहँदी, आँचल
और अपनी नज़ाकत में लिपटे
तमाम वो सिफ़त ( सिफ़त - स्वभाव )
जिससे वो नाज़ुक दिखे
अबला और भावुक दिखेइस्तेमाल होंगी
केवल औरतों के लिए
स्कूल, किताब
तालीम, खिताब
और काबिल दिखने की कोशिश में
उठे तमाम वो कदम
जिनपे उनका अधिकार नहीं
ऐसे सारे क़दमों को
जिससे उनका सरोकार नहीं
उठने से पहले
रोकना होगा
औरतों को
ख्वाहिश, खुदगर्ज़ी
अभिलाषा, मनमर्ज़ी
और आज़ादी की तमन्ना में घुले
तमाम वो ख्याल
उठ सकती घर की आबरू पे
जिनसे कोई सवाल
ऐसे अश्लील ख्यालों से दूर रहना
फ़र्ज़ होगा
औरतों का
रस्मो-रिवाज़
शर्मो-हया, घूँघट, हिज़ाब
मांगे जाने पे
हर बात का वाजिब जवाब
और हर वो नियम
जिनका आयतों में जिक्र है ( आयतें - कुरान की पंक्तियाँ )
गर आबरू की फ़िक्र है
अमल करना होगा
औरतों को
ऐवज़ में इन सबके
मिलेगी रियायतें
हँसने की, मुस्कुराने की
सपने कभी कभार
फिल्मों सी देख पाने की
जो सुन सके न कोई
दबी आवाज़ में यूँ गुनगुनाने की
देख ले न भीगा बदन कोई
बारिश में यूँ भीग जाने की
जब खा चूका परिवार पूरा
जो बच गया, पेट भर खाने की
'औरतें कम नहीं किसी से' सुनके
चैन की लंबी सांस ले पाने की
हैं और भी कई रियायतें
रहेंगी न अब शिकायतें
नुमायां है ये बड़प्पन समाज का ( नुमायां - ज़ाहिर )
पर बात क्या गिनने गिनाने की
जूड़ी होंगी मगर चद हिदायतें
इन सब के बाद
मवेशी जैसे चरते हैं,
लौट आते हैं होते शाम
वैसे हीं ईमानदारी से
घर लौट आने की
चूल्हे में लौ जलाने की
घर सबके लौट आने तक
चौखट पे आस लगाने की
बच्चों को दूध पिलाने की
बुजुर्गों के पाँव दबाने की
बिस्तर सबका सजाने की
फिर देख कोना कोई
फटी चादर डाल सो जाने की
और इन सब के बीच
खुशकिस्मत वो कितनी,
बार बार मन में दोहराने की
जिम्मेदारी होगी
औरतों की |
Comments
Post a Comment