मैं मेरी तनख़्वाह नहीं हूँ

मैं मेरी तनख़्वाह नहीं हूँ
मेरी कॉलेज की डिग्री,
कद-काठी,
चमड़ी का रंग नहीं
मेरी गर्दन पर छिपती उभरती
खुदकुशी के निशां
वीसा के स्टैम्प
ट्विटर हैंडल
आधार के १२ अंक
जात, मजहब दूर दूर नहीं

जो कौतुहल हो मुझे जानने की
तुम मुझे मेरी कविता मान लो
उन्ही की तरह स्वछन्द हूँ मैं
उनके शब्दों के बीच छुपे सैंकड़ों मतलब
उन मतलबों के बीच का अंतर्द्वंद हूँ मैं
छुपी होंगी उन्हीं लाइनों में
खुद मेरा सारांश भी
जो ढूंढ पाओगे तुम
मेरी ही किसी कविता का एक छंद हूँ मैं

जो मुश्ताक़ हो तुम, जानना हो मुझे
तुम मुझे मेरी कहानियाँ मान लो
उन्ही की तरह मनगढंत हूँ मैं
कहानियों में बसे सैंकड़ो किरदार
उन्हीं किरदारों का अंश हूँ मैं
छुपी है काल्पनिक उन कहानियों में
मेरे जीवन के किस्से
जो समझ जाओगे तुम
मेरी ही कहानियों का एक अंक हूँ मैं

गर तुम्हें लेबल डालने की ज़िद हो
तुम मुझे एक लेखक मान लो
उस सनकी भीड़ का एक अंश हूँ मैं
आम तौर पे मोहब्बत की लौ हूँ
क्रान्ति पथ पर विध्वंस हूँ मैं
हुकूमत की गिरेबां
में झाकते हर शब्द मेरे
जो भांप पाओगे तुम
अपने शब्दों के बिना अपंग हूँ मैं

हाँ, तुम मुझे एक लेखक मान लो ||

- मृत्युंजय


Comments

Popular posts from this blog

AMUSINGLY TRUE

इक लेखक का जन्म

ज़िंदा