उद्विग्न मन
(उद्विग्न = anxious , सोखता = to absorb , जोखता = to weigh , अस्वीकार्य = unacceptable, कृत्य = act,
यत्न = effort)
उद्विग्न मन तेरा भी (उद्विग्न -
उद्विग्न मन मेरा भी
कुछ बात पे हैरान है ये
किसी बात से परेशान है ये
कुछ सोचता, फिर सोखता
उस बात को फिर जोखता
जो तौल पाता है उसे
उस बात की हैवानियत से
शर्मसार मन तेरा भी,
शर्मसार मन मेरा भी |
किसी बात से चिंतित है ये
और तनिक भयभीत भी
क्या करूँ ये सोचता
कुछ कर सकूँ,मन कचोटता
जो बेबसी की आड़ में
खूबसूरत इस संसार में
अस्वीकार्य इस कृत्य से
मैं किनारा कर गया
उस बेबसी के भार से
तार तार मन तेरा भी,
तार तार मन मेरा भी |
कह रहा हठ बार बार
हो जायेगा, कर प्रहार
जो किया मन से प्रयास
तो कैसी जीत, काहे का हार
दहाड़ती, उन चीखों की
लाज़ रख, बस एक बार
जो लाज़ रख पाता कभी
उस बात की इंसानियत से,
होता गौरवान्वित
सौ बार मन तेरा भी,
सौ बार मन मेरा भी |
कौन कहता है नहीं
संघर्ष की कोई जीत है
चल उठ खड़ा हो, देख तो
झूठ खुद भयभीत है
जो अब नहीं तो फिर कभी
हो पायेगा ये यत्न भी
जो एक तिनका हिल गया
हिल जायेगा कण-कण सभी
तिनकों की उस आस में
जो सहारा मिल गया
साँस फूलती धड़कनों को
जो किनारा मिल गया
झाँक पाता हूँ कभी
उस आस के विश्वास में
दिखता बहुत खूबसूरत,
संसार ये तेरा भी, संसार ये मेरा भी ||
- मृत्युंजय
Comments
Post a Comment