इक तमन्ना
इक तमन्ना
की तुम्हें
किसी शायरी में गढ़
बो दूँ अपने पसंदीदा फूलदान में
जब नज़्म बनकर उभरो
कसीदें पढ़ सकूँ
अपनी क़ाबिलियत के |
की तुम्हें
किसी शायरी में गढ़
बो दूँ अपने पसंदीदा फूलदान में
जब नज़्म बनकर उभरो
कसीदें पढ़ सकूँ
अपनी क़ाबिलियत के |
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